

Ramo Vigrahvan Dharnah
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यह पुस्तक वाल्मीकि रामायण के गहन अध्ययन, सूक्ष्म मनन एवं अनवरत अनुशीलन के अनन्तर लिखी गयी है। लेखक ने वाल्मीकि रामायण के तीनों संस्करणों दाक्षिणात्य, पूर्वोत्तरीय एवं पश्चिमोत्तरीय के विश्लेषण तथा बड़ौदा से प्रकाशित समीक्षात्मक ग्रन्थ में उपलब्ध करीब 40 पाण्डुलिपियों के तुलनात्मक विवेचन के बाद आधिकारिकता पूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत किया है और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम पर आक्षेपों की जो बौछार सदियों से होती आयी है उनका सम्यक् भंजन किया गया है। वाल्मीकि रामायण के श्लोकों को ही प्रस्तुत कर यह सिद्ध किया गया है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने वाली के चलाये पत्थरों और पेड़ों को नष्ट करने के बाद अपने वज्र-सदृश बाणों से उसके प्राण हरे थे। यह भी सिद्ध किया गया है कि शम्बूक ने उल्टा लटक कर और धूम पीकर स्वर्ग जाने की इच्छा से जो तपस्या की थी, वह किसी भी धर्मशास्त्र में अपराध की श्रेणी में नहीं आतीः अतः वह किसी दण्ड का पात्र ही नहीं था; फिर उसे दण्डित करने का प्रश्न ही नहीं उठता। शम्बूक-वध की घटना प्रक्षिप्त ही नहीं है; बल्कि बिल्कुल बेतुका वृत्तान्त है। रामराज्य में किसी निर्दोष को इस प्रकार का क्रूर दण्ड नहीं दिया जा सकता था। शूर्पणखा के पंचवटी प्रवेश एवं अंग-भंग करने का प्रश्न है ..........
