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वाल्मीकि रामायण

वाल्मीकि रामायण- अनुवादक आचार्य सीताराम चतुर्वेदी - महावीर मन्दिर प्रकाशन वाल्मीकि रामायण का यह अनुवाद किसी विशेष मत के आग्रह से ऊपर उठकर वाल्मीकि की भाषा को हिन्दी के पाठकों तक अविकल पहुँचाने का सबसे बड़ा प्रयास है प्रस्तुत अनुवादक पुण्यश्लोक आचार्य सीताराम चतुर्वेदी हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ अनुवादक हैं। आपने कालिदास की कृतियों को जिस कुशलता से हिन्दी में अनूदित किया है, उससे सुधी-जगत् परिचित है। संस्कृत से हिन्दी अनुवाद करने में स्थान-भेद से सांस्कृतिक परिवर्तन की स्थिति तो नहीं है; क्योंकि दोनों भाषाएँ एक ही धरातल की हैं; किन्तु काल-भेद के कारण दोनों भाषाओं द्वारा अभिव्यक्त संस्कृति में इतना भेद हो गया है कि सब कुछ बदला-सा लगता है। यह सांस्कृतिक विरूपण संस्कृत से हिन्दी अनुवाद के क्रम में एक समाधेय बिन्दु है। संस्कृत और हिन्दी भाषा की शैली में भी भेद है। संस्कृत में सामासिकता है; वहाँ समास, सन्धि, तद्धित प्रत्यय, कारक आदि के प्रयोग से कम शब्दों में अधिक कहने की क्षमता है; किन्तु हिन्दी में वियोगात्मकता है; वहाँ अधिक शब्दों की आवश्यकता होती है। अतः संस्कृत से हिन्दी अनुवाद करने के लिए प्रतिरूपण शैली ही उपयुक्त मानी गयी है, जिसमें एक शब्द का अनुवाद एक वाक्य या वाक्यखण्ड के रूप में होता है। संस्कृत में श्लेष और श्लेषानुप्राणित उपमालंकार की छटा तो अनुवाद की लम्बाई और बढ़ा दे

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वाल्मीकि रामायण

Ramo Vigrahvan Dharnah

यह पुस्तक वाल्मीकि रामायण के गहन अध्ययन, सूक्ष्म मनन एवं अनवरत अनुशीलन के अनन्तर लिखी गयी है। लेखक ने वाल्मीकि रामायण के तीनों संस्करणों दाक्षिणात्य, पूर्वोत्तरीय एवं पश्चिमोत्तरीय के विश्लेषण तथा बड़ौदा से प्रकाशित समीक्षात्मक ग्रन्थ में उपलब्ध करीब 40 पाण्डुलिपियों के तुलनात्मक विवेचन के बाद आधिकारिकता पूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत किया है और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम पर आक्षेपों की जो बौछार सदियों से होती आयी है उनका सम्यक् भंजन किया गया है। वाल्मीकि रामायण के श्लोकों को ही प्रस्तुत कर यह सिद्ध किया गया है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने वाली के चलाये पत्थरों और पेड़ों को नष्ट करने के बाद अपने वज्र-सदृश बाणों से उसके प्राण हरे थे। यह भी सिद्ध किया गया है कि शम्बूक ने उल्टा लटक कर और धूम पीकर स्वर्ग जाने की इच्छा से जो तपस्या की थी, वह किसी भी धर्मशास्त्र में अपराध की श्रेणी में नहीं आतीः अतः वह किसी दण्ड का पात्र ही नहीं था; फिर उसे दण्डित करने का प्रश्न ही नहीं उठता। शम्बूक-वध की घटना प्रक्षिप्त ही नहीं है; बल्कि बिल्कुल बेतुका वृत्तान्त है। रामराज्य में किसी निर्दोष को इस प्रकार का क्रूर दण्ड नहीं दिया जा सकता था। शूर्पणखा के पंचवटी प्रवेश एवं अंग-भंग करने का प्रश्न है ..........

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Ramo Vigrahvan Dharnah

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