
RSS aur Bahujan Chintan
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दलित-पिछड़े तबकों से आए सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह किताब और भी जरूरी है, क्योंकि इन तबकों से आए हुए अधिकांश पढ़े-लिखे लोग भी आंबेडकर को दलित घेरे में आरक्षण की अवधारणा तक सीमित रखना चाहते हैं। इससे आगे बढ़ना उन्हें असुविधाजनक महसूस होता है। संघ को आरक्षण अैर विशेषाधिकारों को स्वीकार लेने में कोई असुविधा नहीं है, बशर्ते विशाल बहुजन समुदय उसके वर्चस्ववादी-ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक-राजनीतिक मिशन का हिस्सा बन जाए। (इसी किताब में प्रेमकुमार मणि द्वारा लिखित प्रस्तावना से उद्धृत)