

मन्त्रयोग
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ISBN : 978-93-5913-042-2, Pages: 58, Size: A5, 2023, Paperback. यह पुस्तक सनातन धर्म का अमूल्य रत्न हैं, और बहुत काल से लुप्त है। उपासकों के लिए अमूल्य रत्न है, हितकारी है और पंचदेव उपासना में एक स्तंभ हैं। यह ज्ञान का वर्धन करते हुए अभ्युदय और निःश्रेयस के साथ मनोनाश करते हुए ज्ञान, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करती है। मन्त्रयोग सोलह अंगों से सशोभित है, जैसे चन्द्रमा सोलह कलाओं से सुशोभित है। भक्ति, शुद्धि, आसन, पंचांगसेवन, आचार, धारणा, दिव्यदेशसेवन, प्राणक्रिया, मुद्रा, तर्पण, हवन, बलि, याग, जप, ध्यान, और समाधि, मन्त्रयोग के ये षोडश अंग हैं। इन सोलह अंगों से साधक अपने इष्टदेव को प्रसन्न कर सिद्धि तथा दर्शन का लाभ पाता हैं। इस पुस्तक के बगैर सनातन धर्म को समझ पाना अत्यंत कठिन हैं। यह पुस्तक एक नौका के समान है जो कि इस भवसागर को पार करने में सक्षम है। सनातन धर्म मूल धर्म है जिससे अन्य धर्म की उत्पत्ति हुई है। सनातन धर्म पूर्ण है और मुक्ति के मार्ग को बताने का एक मात्र साधन है, अतएव इसका पालन करना सर्वहितकारी है तथा इसका प्रचार-प्रसार करना धर्मसंगत है।
